सातुड़ी तीज आज, पढ़ें व्रत का मुहूर्त और पौराणिक कथा

सुहागिनों का मुख्य पर्व सातुड़ी तीज हर साल रक्षाबंधन पर्व के तीसरे दिन मनाया जाता है। वास्तव में ये तीज हरतालिका और हरियाली तीज के मध्य आने वाली तीज है। यूँ तो तीज 5 प्रकार की होती हैं जिसमें से मुख्यतौर पर हरियाली तीज, सातुड़ी तीज व हरतालिका तीज बेहद धूमधाम से मनाई जाती है। सातुड़ी तीज को कई राज्यों में कजली तीज और बड़ी तीज के नाम से भी लोग जानते है। सातुड़ी तीज पर व्रत कर पूजा करने का विधान है।

हिन्दू धर्म में जिस प्रकार सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए हर साल कई व्रत रखती हैं, जिसमें मुख्यतः करवा चौथ, हरतालिका तीज, हरियाली तीज, वट सावित्री व्रत होते हैं, उसी प्रकार कजरी तीज का व्रत भी विवाहित स्त्रियों के लिए बेहद विशेष होता है। हिन्दू कैलेंडर अनुसार हर वर्ष भाद्रपद माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार ये व्रत जुलाई या अगस्त के महीने में पड़ता है।

कजरी तीज 2019 का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग अनुसार इस वर्ष कजरी तीज या सातुड़ी तीज का व्रत आज यानी रविवार, 18 अगस्त 2019 को देशभर में मनाया जाना है। जिस अवसर पर महिलाएँ मां पार्वती के प्रति समर्पित कठोर निर्जल व्रत रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अपना व्रत खेलेंगी।

कजरी तीज का मुहूर्त

17 अगस्त, 2019 को 22:50:07 से तृतीया आरम्भ

19 अगस्त, 2019 को 01:15:15 पर तृतीया समाप्त

नोट: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए है। जानें अपने शहर में कजरी तीज मुहूर्त

महिलाएँ रखती हैं निर्जला व्रत

यह व्रत उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार समेत देश के अन्य हिन्दी भाषी राज्यों में विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से नीमड़ी माता की पूजा की जाती है। जिस दौरान सुहागन महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इसके अलावा अविवाहित लड़कियाँ भी जल्द विवाह के लिए व सुयोग्य वर की कामना के लिए यह व्रत रख सकती हैं।

सातुड़ी तीज व्रत के कुछ मुख्य नियम

  • करवा चौथ की तरह ही यह व्रत भी निर्जल रखा जाता है। हालांकि गर्भवती या बीमार स्त्रियाँ इस दिन फलाहार कर सकती हैं।
  • चूंकि यह व्रत भी चांद को देखकर ही खोला जाता है। ऐसे में यदि किसी कारणवश रात्रि में चंद्रमा नहीं दिखाई दे तो रात 11.30 बजे आसमान की ओर मुख करके चंद्रमा को अर्घ्य देकर भी व्रत खोला जा सकता है।
  • ध्यान रहे कि इस पर्व पर एक बार व्रत का उद्यापन कर लिया जाए तो इसके बाद हर साल इस व्रत को करना जरूरी हो जाता है।

पढ़ें: कजरी तीज की संपूर्ण पूजा विधि

चंद्रमा को अर्घ्य देने की सही विधि

  • कजरी तीज पर चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोले जाने का विधान है। ऐसे में अर्घ्य देने के लिए रात्रि में आसमान की ओर चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली और अक्षत चढ़ाएँ। इसके बाद उन्हें अलग-अलग व्यंजनों से भोग लगाएँ।
  • इस दौरान चांदी की एक अंगूठी व गेहूं के कुछ दाने हाथ में लेकर जल का अर्घ्य देना शुभ रहता है जिसके बाद उसी स्थान पर चार बार घुमकर परिक्रमा करें।

सातुड़ी तीज की पौराणिक व्रत कथा

मान्यता अनुसार, एक गांव में एक बेहद गरीब ब्राह्मण रहता था, वो और उसकी पत्नी अपनी गरीबी से अक्सर परेशान रहते थे। एक वर्ष भाद्रपद महीने की कजली तीज आई, जिस दौरान ब्राह्मण की पत्नी ने तीज माता का व्रत रखा। उसने अपने पति से कहा कि, “आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सत्तू लेकर आओ।” चूँकि ब्राह्मण गरीब था इसलिए उसने पत्नी से कहा कि, “मैं सत्तू कहां से लाऊं।” जिस पर पत्नी ने गुस्से से कह दिया कि “चाहे चोरी करो या चाहे डाका डालो, लेकिन आज मेरे लिए सत्तू लेकर आओ।”

रात का समय था और ब्राह्मण अपनी बेबसी लेकर घर से निकल गया। वो गांव के एक साहूकार की दुकान पर पहुंचा। वहाँ किसी को भी न देखकर उसने चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सत्तू बना लिया और वहां से चल पड़ा। इतने में ही ब्राह्मण के क़दमों की आवाज़ सुनकर दुकान का नौकर जाग गया और चोर-चोर चिल्लाने लगा। 

नौकर की आवाज़ सुनकर अंदर से साहूकार आया और उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण बोला “मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सत्तू बना कर ले जा रहा था।” साहूकार ने तुरंत उसकी तलाशी ली। तलाशी के दौरान ब्राह्मण के पास से साहूकार को सत्तू के अलावा कुछ नहीं मिला। उधर चांद निकल आया था और ब्राह्मणी पति का इंतजार कर रही थी। साहूकार बेहद धर्मी और परोपकारी व्यक्ति था। ब्राह्मण की सच्चाई देखकर उसने कहा कि “आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूँगा।” इसके बाद साहूकार ने ब्राह्मण को सत्तू के साथ ही शृंगार की सामग्री, रूपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। इसके बाद ब्राह्मणी के साथ-साथ साहूकार ने भी अपने परिवार संग मिलकर कजली माता की पूजा की।

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