अंक 3 की रहस्मयी शक्ति : एक ज्योतिषीय दृष्टिकोण

“तीन तिगड़ा काम बिगड़ा , नहीं …”

अंक 3 का ज्योतिषीय महत्व। आपको जानकर हैरानी होगी कि, जिस 3 अंक को हम में से बहुत से लोग अशुभ मानते हैं, असल में उस शब्द का हमारे जीवन में काफी महत्व है। कैसे? इसका जवाब जानते हैं एस्ट्रोसेज की जानी-मानी ज्योतिष दीप्ति जैन से।

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आज मैं आपके समक्ष एक बहुत ही रोचक विषय लेकर आयी हूं।  प्रायः लोग अंक तीन से घबराते हैं । मुहावरा भी यह कहता है कि,  ‘तीन तिगड़ा काम बिगड़ा ‘। लेकिन मैं इस बात को दूसरा पहलू देना चाहती हूँ।  

सर्व प्रथम, अंक ज्योतिष के अनुसार देखे तो, अंक तीन गुरु ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।  गुरु, ज्ञान और विवेक का कारक है। जिस व्यक्ति का मूल्यांक तीन होता है, उस पर ईश्वर की असीम अनुकंपा रहती है। वह व्यक्ति ज्ञानी,  महत्वकांक्षी, मधुर भाषी, गंभीर, बहु विद्या में निपुण व धार्मिक होता है। वह ना केवल आत्म शक्ति को जाग्रत करता है अपितु, पूरे समाज को मार्ग दर्शन देता है। 

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स्वामी विवेकानंद, एलेग्जेंडर ग्राहम बेल, अब्राहम लिंकन, फ्लोरेंस नाइटेंगल और सुप्रसिद्ध अभिनेता रजनीकांत जैसे कितने उदाहरण हैं हमारे पास जिन लोगों ने ना केवल अपने आप को उभारा अपितु पूरे जनमानस का मार्ग प्रशस्त किया। 

अगला महत्वपूर्ण पहलू है श्रृष्टि को चलाने वाली त्रिशक्ति की।  ब्रह्मा द्वारा उत्पत्ति, विष्णु द्वारा पालना व शिव द्वारा विनाश। त्रिशक्ति में ही हमारा मानव और प्रकृति का मूल अस्तित्व छिपा है। त्रिकाल, आदि, मध्य व अंत। यह तीनों काल को मिलाकर ही हमारा पूरा समय चक्र निर्मित होता है। इस कालचक्र के पूर्ण होने पर, हम पुराने से विदा ले कर, नए कालचक्र में प्रवेश करते हैं । 

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तीन भुजाओं से त्रिकोण का निर्माण होता है और त्रिकोणाकार, अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। अर्थात् शक्ति , प्रकाश व ऊर्जा का स्रोत। किसी भी व्यक्ति में यदि अग्नि तत्व की कमी हो तो वह अपने जीवन में असफल रह जाता है। उसमें ना ही उत्साह और ना ही प्रेम दिखाई देता है। व्यक्ति में अग्नि तत्व उसमें ज्ञान की विपासना जगा कर उसका मार्ग प्रशस्त करता है। 

पिरामिड विज्ञान का मूल ही है त्रिकोण शक्ति। यदि हम प्रयोग रूप में कोई भी वस्तु पिरामिड के नीचे रखते हैं तो वह वस्तु ज्यादा देर तक जीवित रहती है। चाहे वह पौधा हो या कोई खाद्य पदार्थ। यह बात तो वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके हैं कि, पिरामिड के नीचे बैठकर कार्य करने में व्यक्ति की ग्रहण शक्ति का विकास होता है। 

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इस विषय को और भी बारीकी से देखें तो यदि हम ज्ञान मुद्रा में बैठकर कोई कार्य करते हैं तो निसर्गतः ही हमारे शरीर त्रिकोण आकार ले लेता है। हमारे ध्यान लगाने की क्रिया और भी प्रभावशाली हो जाती है। 

त्रिनेत्र जागृत होने की शक्ति को कौन नहीं जानता। कितने समय से साधु संत ध्यान मुद्रा में बैठ अपनी तीसरी आंख खोलने का प्रयास कर रहे हैं। यदि किसी व्यक्ति की तीसरी आंख खुल जाती है, तो व्यक्ति परम सत्य को जान लेता है, जिसके पीछे हमारे मानव जीवन का पूरा लक्ष्य छिपा है। 

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इन सभी तथ्यों  के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि ‘तीन’ काम बिगाड़ता नहीं अपितु कार्य सिद्ध करता  है। यदि हम तीन की शक्ति जान ले तो हमारा मानव जीवन ही सफल हो जाएगा। 

Author: दीप्ति जैन आधुनिक वास्तु एस्ट्रो विशेषज्ञ

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